Friday, 3 May 2024

भारतीय भाषा चिंतन परंपरा

 


महर्षि पाणिनि-  

भाषाविज्ञान के इतिहास में पाणिनि का नाम सबसे अधिक प्रसिद्ध है, भारत में ही नहीं बल्कि विश्व में भी भाषाविज्ञान के क्षेत्र में पाणिनि के नाम को बड़े आदर से लिया जाता है। भारतीय भाषाविज्ञान पर पाणिनि का ऐसा प्रभाव पड़ा कि दूसरे व्याकरण संप्रदाय लुप्त हो गए और पाणिनि के बाद जो भी आचार्य हुए उन्होंने पाणिनि की व्याख्या करने में अपना गौरव महसूस किया। पाणिनि के जीवन काल के बारे में विद्वानों में मतभेद है। कुछ विद्वान उन्हें आठवीं शताब्दी ईसा पूर्व मानते हैं तो कुछ विद्वान उन्हें चौथी शताब्दी ईसा पूर्व। उनका वास्तव्य तक्षशिला के पास शलातूर गाँव में था। इसी के आधार पर उनका नाम शलातूरीय भी माना जाता है। उनके मृत्यु के बारे में कहा जाता है कि एक सिंह ने उन्हें मार डाला। पाणिनि के पूर्व भी वैयाकरण हुए और पाणिनि के बाद भी परंतु पाणिनि का व्याकरण सबसे प्रसिद्ध है। पाणिनि के उपलब्ध ग्रंथों में से अष्टाध्यायी ग्रंथ सबसे लोकप्रिय ग्रंथ है। अष्टाध्यायी को शब्दानुशासन भी कहते हैं। यह ग्रंथ आठ अध्यायों में लिखा गया है। प्रत्येक अध्याय का विभाजन चार-चार पादों में किया गया है। इस ग्रंथ में लगभग चार हजार के करीब सूत्र है। इन आठ अध्यायों  और चार हजार सूत्रों में पूरा व्याकरण लिखा गया है। पाणिनि ने अपने व्याकरण में कम से कम शब्दों अधिक से अधिक अर्थ देने का प्रयास किया है।

            अष्टाध्यायी में लौकिक संस्कृत के साथ ही वैदिक व्याकरण भी दिया है। यह सूत्र पद्धति से लिखा गया व्याकरण है। इस ग्रंथ में सूत्रों की संखा 3997 है। इसके विभिन्न अध्यायों में संधि, कारक, कृत और तद्धित प्रत्यय, समास, सुबंत और तिङन्त, परिभाषाएँ, द्विरुक्ति तथा स्वर प्रक्रिया आदि कार्य शामिल है।

इसके अलावा पाणिनि की अन्य रचनाएँ मानी जाती है- धातु-पाठ, गनपाठ, उणादिसूत्र और लिंगनुशासन ये अष्टाध्यायी के परिशिष्ठ के रूप में हैं।

पाणिनि का भाषाशास्त्र में योगदान-

पाणिनि के 14 माहेश्वर सूत्रों में संस्कृत की पूरी वर्णमाला दी गयी है। इनमें भी क्रम दिया गया है जैसे- स्वर, अंतस्थ, पंचम, चतुर्थ, तृतीय, द्वितीय और स्पर्श वर्ण, ऊष्म ध्वनियाँ आदि। ध्वनि विज्ञान की दृष्टि से यह क्रम वैज्ञानिक है। इन 14 सूत्रों से अनेक प्रत्याहार बनते हैं। प्रत्याहार का अर्थ है- संक्षेप करने की विधि। इसके माध्यम से शुरुआती और आखरी संकेत लेने से बीच के वर्णों या प्रत्ययों का संग्रह हो जाता है। जैसे- अच् = स्वर में अ से च् तक। हल् = व्यंजन, ह से ल् तक। पाणिनि ने संधि नियमों की बात की इन नियमों के द्वारा ध्वनिविज्ञान के वर्ण परिवर्तन संबंधी सिद्धांतों का ज्ञान होता है। अंगाधिकार प्रकरण में प्रकृति और प्रत्यय का सूक्ष्म विवेचन किया गया है। सुबंत् और तिंङन्त रूपों में अर्थतत्व और संबंधतत्व का विशेषण भी दिया गया है।   

 पाणिनि ने पदों का विभाजन दो भागों में किया है- सुबंत् और तिंङन्त। विश्व में पदों के जीतने भी विभाजन हुए हैं उनमें से सबसे वैज्ञानिक पाणिनि द्वारा किया गया पदों का विभाजन है। यास्क ने पदों के चार भेद माने थे और पश्चिमी विद्वानों ने पदों के आठ भेद माने हैं। सभी शब्दों का आधार धातु को माना गया है। उसमें ही प्रत्यय और उपसर्ग लगाने पर शब्द बनते हैं।


Thursday, 17 December 2020

भाषा की विशेषताएँ


मानव भाषा की कुछ ख़ास विशेषताएँ हैं, जिनके आधार पर मनुष्य अन्य प्राणियों से भिन्न श्रेणी में शामिल होता है|  
भाषा की यही विशेषता मनुष्य को पृथ्वी पर पाए जाने वाले अन्य जीवों से अलग करती हैं| इनमें निम्न लिखित विशेषताओं को शामिल किया जा सकता हैं| 

1. विस्थापन (Displacement) मनुष्य भाषा के माध्यम से वर्तमान, भूत और भविष्य के संदर्भ में बात कर सकते हैं|
2. यादृच्छिकता (Arbitariness) भाषा की ध्व्वानियाँ और अर्थ में कोई तार्किक संबंध नहीं होता| जैसे- पानी, water, पाणी, जल, आब|
3. सर्जनात्मकता (Creativity) मनुष्य भाषा में उन वाक्यों का निर्माण कर सकता है, जो उसने इससे पहले कभी नहीं सुने|
4.सांस्कृतिक संरचना (Conventionality) बच्चा कोई भी भाषा जन्म से सीखकर नहीं आता अतः वह भाषा को समाज में सीखता है, अपने परिवेश से सीखता है|
5. द्वयात्मक व्यवस्था (Duality pattern) भाषा की संरचना का अध्ययन दो स्तरों पर होता है; पहला स्तर वे सार्थक इकाइयाँ हैं जिनसे वाक्य की रचना की जाती हैं| इन सार्थक इकाइयों को शब्द भी कहते हैं और दूसरा वह स्तर हैं जो इन सार्थक इकाइयों की रचना करता हैं यानी भाषा की ध्वनियाँ| ये द्वानियाँ अपने आप  में निरर्थक होकर अपने से बड़ी इकाई की रचना कराती हैं| 
6. विविक्तता (Discreatness) भाषा में हर शब्द और वाक्य के बाद विराम की स्थति आती है| जिस वजह से मनुष्य ध्वनियों को आसानी से समझ सकता है|  

भारतीय भाषा चिंतन परंपरा

  महर्षि पाणिनि-   भाषाविज्ञान के इतिहास में पाणिनि का नाम सबसे अधिक प्रसिद्ध है , भारत में ही नहीं बल्कि विश्व में भी भाषाविज्ञान के क्...